वक़्त कभी भी ना तो
तुम्हारा था और
ना मेरा
तुम जितना चाहो
उतना ऊँचा आसमान
सर से ऊपर उठा लो अपने
धुप फिर भी
तुम्हारे और मेरे
सर पर
बराबर ही आएगी
रात उतने ही तारे
तुम्हारे लिए भी सजाएगी
जितने मेरे लिए
पानी और वक़्त
कभी भी किसी के
दबाव में नहीं चलते
मुट्ठी में दोनों में से एक को भी
कभी भी
कोई भी
नहीं पकड़ पाया
तो फिर कोशिश क्यूँ
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