Saturday, August 04, 2012

प्यार थोड़ा सा उम्र भर का


वो अक्सर अपने ख्यालों में गुम रहती थी| उसका अपना इस दुनिया में लगभग कोई नहीं था| जो दूर दराज़ के रिश्तेदार थे वो भी उसके गलत 'धंदे' की वजह से उस से कन्नी काटते थे| वो बहुत सुन्दर थी ऐसा नहीं कह सकते परन्तु बदसूरत थी ऐसा भी नहीं था| उसका एक कमरे का घर बहुत ज्यादा सामन समेटे हुए नहीं था मगर साफ़ सुथरा था| कमाई के लिए वो पास के एक रेस्तोरांत में रसोई में काम करती थी. 

वो इलाके का नामी गुंडा था लेकिन गरीबों की बस्ती में सब उसे बहुत चाहते थे क्यूंकि वो जितना भी पैसा गोलमाल से कमा कर लाता था सब गरीबों में बाँट देता था. बच्चों में वो ख़ास चहेता था| उसका भी दुनिया में अपना कहने को कोई नहीं था| लूटपाट का काम, सिगरेट और शराब के अलावा उसमें बाकी और कोई ऐब नहीं था| वो लम्बा कद और गंभीर स्वभाव का था लेकिन बच्चों के संग बच्चा बन जाता था|

वो बहुत कम बोलती थी इसीलिए उसके आसपास रहने वालों में से भी काफी लोगों को उसका नाम भी नहीं मालूम था| जिन्हें मालूम था वो उसे रूपा के नाम से बुलाते थे. वो बहुत बोलता था और ठाट से रहता था| सब उसे राजा के नाम से जानते थे| कुल मिला कर बस्ती में सभी लोग रूपा और राजा को चाहते थे| सब ने जोर लगा कर न दोनों को आपस में शादी करने के लिए मना लिया| काफी जोर के बाद राजा रूपा से मिलने के लिए राज़ी हुआ था और मिलने के बाद उसे भी लगा की ये लड़की उसके लिए ठीक है| असलियत में ज़िन्दगी में पहली बार उसने किसी लड़की को गौर से देखा था और शायद इसलिए उसे ज्यादा सोचना नहीं पड़ा और उसने हाँ बोल दी| रूपा ने भी बस्ती के बड़े बुजुर्गों के समझाने के बाद हाँ कह दी लेकिन राजा के लिए उसने गलत काम छोड़ने की शर्त रखी| जाने कैसे राजा ने भी एक दम से उसे मान लिया|

सात साल ४ बच्चे और खुशगवार घर का माहौल - ये सब बना कर दिया रूपा ने काम छोड़ने के बाद और सारा ध्यान घर पर लगाने पर| राजा ने इमानदारी से बस्ती के पास एक स्टोर की देख रेख का काम शुरू किया था शादी के बाद और सेठ उसके काम और उसकी इमानदारी से काफी खुश रहते हुए उसे लगातार तरक्की देता रहा. राजा के चरों बच्चों की पड़ी के खर्चे का ज़िम्मा सेठ ने अपने ऊपर लिया और आज बच्चे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पड़ते है|

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