Sunday, January 29, 2012

अंधे अँधेरे

गुन्जयाशों के दौर में 
हर कोई
अपने पांव के नीचे 
की ज़मीन
खो कर भी
बेफिक्र है

एहसास इस बात का
की एक दिन हरेक शख्स
को आखिरी सांस के बाद
अपनी अंतिम मंजिल की तरफ
बढना है

सब कुछ जानते हुए भी
अनजान रहना
कितना अजीब है

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