१ अक्तूबर भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन है , अगर ऐसा कहा जाए तो अनुशयोक्ति नहीं होगी। एक महान दिन था भारत के इतिहास में सं १९२६, १ अक्तूबर जब धरती पर उस बालक का जिसे आज हम सब माननीय अशोक सिंहल जी के नाम से जानते हैं। ये एक सौभाग्य था माननीय अशोक सिंहल के साक्षात दर्शन का इस १ अक्तूबर को, उनके नब्बवें जन्मदिवस पर।
जैसा की हम सब जानते हैं माननीय अशोक सिंहल जी भारतीय विश्व के संगरक्ष हैं। वह देश, समाज, धर्म और संस्कृति के द्योतक, सुधारक, और रक्षक के रूप में जाने जाते हैं। छात्र अवस्था से ही उनका इन सबके प्रति रुझान और नेतृत्व देखने को मिला। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से मेटल और मेटल्लर्जी में अव्वल स्थान प्राप्त कर के उन्होंने अपने असीमित ज्ञान और प्रतिभा का नमूना जग तो दिखा दिया। इस अभूतपूर्व प्रतिभा के बावज़ूद उन्होंने सफलता और कैरियर की राह को अपनी इच्छा से त्याग कर हिंदुत्व की सेवा का दुर्लभ और दुर्गम रास्ता अपनाया। अपने जीवन के चरम ६५ वर्ष उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और संरक्षक के रूप में समर्पित कर दिए।
हिंदुत्व के पुरोधा पुस्तक एक कोशिश है उनके ९० साल की तपस्या को प्रस्तुत करने का। इस पुस्तक को पढ़ना एक अलग अनुभूति प्रदान करेगा, इसमें कोई अनुशयोक्ति नहीं है।
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