कुछ दूरियां नज़दीकियों की जगह,
कुछ नज़दीकियां दूरियों की,
बिना पास दूर की सोचे समझे,
लेती गई।
आई फिर इस तरह तुम्हारी यादें,
ज्यूँ धुप बारिश के कंधे पर
सर टिका कर लेटी हो।
आई कब नींद
कब यादों ने करवट बदली
कब हकीकत के पहलु से
झांकते झांकते उचटी नींद।
कितने सारे बरस
यूँ ही निकल गए
इन अनमोल पलों की आस में।
तेरी यादों के भीगे दायरों
के बीच
खड़ा हूँ सर झुकाये
एक सूखे बंजर
रेतीले टापू की तरह।
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