वो बचपन की निश्चलता
This post is a part of Write Over the Weekend, an initiative for Indian Bloggers by BlogAdda
वो बेफिक्री का माहौल
वो हँसता खेलता आँगन
वो मुस्कुराती गलियां
वो खिलखिलाता मोहल्ला
वो खिलोनो का खनकना
वो पेड़ों पर चिड़ियों का चहकना
कि जो अब तक नहीं था
वो सब अचानक से दिखने लगा
और दिखते दिखते बढता चला गया
माँ की आँखों में डर में लिपटा दर्द
अनकही बातें अनकहे किस्से
सब हंसी ठठे और खिलखिलाहट
वो चिड़ियों की चहचाहट
वो बेफिक्र माहौल वो खनखनाते खिलौने
सब एक दम सन्नाटे में तब्दील हो गए
मेरे सकूं के दिन बचपन के साथ कहाँ खो गए
बेख़ौफ़ लम्हे कितने दहशतगर्द और ग़मगीन हो गए
बेख़ौफ़ लम्हे कितने दहशतगर्द और ग़मगीन हो गए
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