Sunday, October 14, 2012

तू कभी गौर कर या न कर मेरी आँखों में

अपने पहलू में बैठने का कभी मौका दे दे
थोडा प्यार तो कर चाहे बाद में धोका दे दे

दो चार कदम साथ चल न चल मेरे साथ
चाँद को चांदनी बिखेरने का हौसला दे दे 

जज़्बात की कदर कौन चाहता है अब 
मेरी ख़ामोशी को इज़हार का दर्ज़ा दे दे 

शहर के दरमियाँ भी मज़ार बनती है
आने जाने वालों को मगर थोडा रास्ता दे दे

अपने बुतखाने पर आने की मनाही ही सही
थोड़ी देर के लिए परस्तिश की इजाज़त दे दे

तू कभी गौर कर या न कर मेरी आँखों में
अपनी आँखों की रेत को समंदर दे दे

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