खामोशियां अब भी हमसे बतियाती हैं, उसी तरह
दूरियां हमारे बीच अब भी कोई मायने नहीं रखती।
बहते पानी की मानिंद वक्त कभी आया ही नहीं पकड़ में
फिर भी हर याद ताज़ा हो, जैसे अपनी अपनी जगह।
वो पौधा गये बरसों, तब्दील हो गया विशाल वृक्ष में
ओस अब गिरती है कुछ ज़्यादा तादाद में, सांझे पतों पे।
तसल्ली है, तुम हो, मैं हूं, जहां भी, अपनी अपनी जगह
ख्याल अब भी रखते हैं, यादों को, सहेजते हैं, उसी तरह।
