बहुत नावाजिब गुज़रा था।
कई दिन लगे थे
आग ठंडी होने में
ख़ुद ब ख़ुद हुआ सो हुआ
चाह कर भी जो कर नहीं पा रहा था
आखिर हो ही गया।
जाते जाते अपने आंसुओं से
मेरे कंधे को भिगो कर ही गया वो।
बहुत नाकाबिल हो गये थे हाथ
एक बार भी कंधे थपथपा कर दिलासा नहीं दी
चाहा तो था पर हो ही नहीं पाना था
एक ही पल में पहचान खो सी गई
बिल्कुल नावाकिफ हो गये हम।।