Friday, April 16, 2021

नीलोफ़र #लघुकथा #shortstory #BlogchatterA2z

निकेत तब 5 साल का रहा होगा जब वो पहली बार नीलोफ़र के विशाल भवन में आया था अपने काका के साथ। जब काका ने उसकी अंगुली थामे उसे उस विशाल बंगले के अंदर चलने को कहा तो एक पल के लिए तो वो बिल्कुल जम गया वहीं का वहीं। कहाँ तो उसका छोटा सा गांव और उसमें उसके बाबा की पुरानी हवेली और कहां ये उसके गांव के जितना महल। ये भी किस्मत का खेल था। अब उसका गांव, लोग, हवेली, मां, बाबा, भाई, बहन, सभी बाढ़ में बह चुके थे। कुछ नहीँ बचा था। बचा था तो सिर्फ निकेत जो बाढ़ से एक हफ्ता पहले काका के यहां चला गया था जब वो उसके घर आए और बाबा से बोले इसे मैं अपने साथ ले जा रहा हूं। बाबा ने हंसते हुए कहा था निकेत को - "जा बेटा, कुछ दिन चाचा के यहां रह आ। "

काका उसके दूर के चाचा थे। और फिर एक हफ्ता गुज़रा नहीँ कि ये भयानक हादसा। बाबा के बाबा कभी राय प्रताप सिंह के यहां काम करते थे। राय प्रताप सिंह अब लगभग 80-85 के होंगे लेकिन थे बिल्कुल तंदरुस्त। उन्हें जब इस हादसे का पता चला तो उन्होंने काका को खबर भिजवाई की वो निकेत को उनके यहां छोड़ दे। निकेत की देख रेख और पालन पोषण का ज़िम्मा उन्होंने लेने का निश्चय कर लिया। इतना बड़ा महल निकेत ने असलियत में तो क्या कभी ख्वाब में भी नहीँ सोचा था। इसीलिए इसे देख कर उसे ऐसे लगा जैसे कि जादू हो। राय प्रताप सिंह का महल जितना बड़ा था इतने ही ज़्यादा उसमें नौकर चाकर थे। परिवार के नाम पर सिर्फ राय प्रताप सिंह, उनकी विधवा सुपुत्री कृष्णा और उनकी पौत्री नीलोफ़र, बस गए तीन लोग ही थे। 


नीलोफ़र #लघुकथा #shortstory #BlogchatterA2z
Photo credit: Magdalena Roeseler on Visualhunt

राय प्रताप सिंह के पुत्र और पुत्रवधू यानी कि नीलोफ़र के माता पिता का अभी दो वर्ष पहले एक विमान दुर्घटना में देहांत हो गया था। कृष्णा का पति भी उसी विमान में था। अपने पति के देहांत के बाद कृष्णा अपने पिता राय प्रताप सिंह के पास रहने आ गई थी। हमेशा के लिए। अब राय प्रताप सिंह के पास जीने की कोई उम्मीद थी तो वो बस नीलोफ़र और कृष्णा। और तब आया उन तीनों की जिंदगी में निकेत। निकेत का भोला मासूम चेहरा सभी के मन को भा गया। पहली ही नज़र में। निकेत को भी एक अपनापन सा मेहसूस हुआ यहां और उसका दिल भी यहां रम सा गया था। नीलोफ़र और निकेत दोनों एक ही उम्र के थे। राय प्रताप सिंह ने दोनों को इकट्ठा एक ही स्कूल ने दाखिला दिलाया। निकेत की किस्मत ने अजीब सा खेल खेला।

कहां वो अपने गांव के किसी सरकारी स्कूल में होता। और कहां वो अब नीलोफ़र के साथ शहर के सबसे टॉप स्कूल में था। उसी की क्लास में। तीन बरस बाद राय प्रताप सिंह का देहांत हो गया। कृष्णा ने दोनों बच्चों का ज़िम्मा अपने सर लिया और उसे बखूबी निभाने का निश्चय किया। राय प्रताप सिंह की वसीयत के हिसाब से प्रताप महल की पूरी ज़िम्मेदारी कृष्णा की थी। नीलोफ़र के बालिग होते ही ये सारा उसके नाम हो जाएगा। दस बरस कैसे बीते मालूम हो नहीँ चला। नीलोफ़र की मासूमियत, भोलापन, और अलौकिक सुंदरता उसके चेहरे पर बरकरार थी। निकेत भी 6 फुट का हो गया था। निकेत के शौक और लगन के हिसाब से उसे लंदन के टच कॉलेज में दाखिला मिल गया। जाने से पहले उसने नीलोफ़र से अपनी सच्ची मुहब्बत का इज़हार किया।

हालांकि नीलोफ़र ने अभी तक उसे एक दोस्त की नज़र से ही देखा था पर उसे इस रिश्ते में कोई आपत्ति नहीं हुई। उसने निकेत से सिर्फ एक बात पूछी - "सच्ची मुहब्बत सच्चे दिल से उम्र भर निभा पाओगे?" निकेत ने हंसते हुए कहा - "हाँ, ज़रूर।" तो अगले दो महीनों में मंगनी और शादी हो गई। क्यूंकि दो महीने बाद निकेत को लंदन कॉलेज जॉइन करना था। निकेत के जाने के बाद नीलोफ़र ने अपना सारा ध्यान प्रताप properties सम्भालने में लगा दिया। और जो वक़्त बचता उसमें वो अपनी पेंटिंग का शौक पूरा करती। शहर में ही नहीँ पूरे विश्व में उसका एक नायाब आर्टिस्ट के तौर पर अच्छा रुतबा था। इन्टरनेट और ऑनलाइन की वज़ह से उसके artwork की फर्माइश जगह जगह से आती रहती थी। और उसकी paintings की कीमत भी लाखों में ही होती थी। नीलोफ़र अपने दादा के स्टड फार्म से वापिस आ रही थी कि एक ज़बरदस्त एक्सीडेंट में उसकी आँखों की रोशनी चली गई।

जायदाद में ये साफ लिखा था कि अगर नीलोफ़र की जान किसी हादसे में या किन्ही शक़नुमा हालात में जाती है तो सारी जायदाद एक ट्रस्ट को जाएगी। निकेत फौरन लंदन से आ गया था। रोज़ाना की बिजनेस deals अब कृष्णा या निकेत के हस्ताक्षर से चलने लगी। निकेत ने लगभग सारा कुछ ऑनलाइन कर दिया और banks का कंट्रोल उसके हाथों में चला गया। मगर बैंक के सभी deposits और withdrawals bank managers नीलोफ़र की जानकारी में लगातार डालते रहते थे। नियति का ये खेल होगा ये किसी को अंदाजा नहीँ था। निकेत ने अमेरिका के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में नीलोफ़र को ले जाने का निर्णय लिया। इसके दो कारण थे। एक, वहां का Chief surgeon Dr Smith जो उस hospital का मालिक भी था, निकेत का पुराना दोस्त था। दो, ये हॉस्पिटल आंखों के इलाज के लिए काफी उम्दा गिना जाता था।

अमेरिकन हॉस्पिटल में डॉ स्मिथ की देख रेख में नीलोफ़र को एक साल गुज़र गया था। डॉ स्मिथ की देख रेख में छोड़ कर निकेत लंदन वापिस चला गया था। डॉ स्मिथ के हिसाब से जब तक दिमाग की चोट ठीक नहीँ हो जाती, आंखों का ऑपरेशन जानलेवा हो सकता है। दिमाग की चोट ठीक होने में एक या दो साल और लग सकते थे। डॉ स्मिथ अपने तौर पर दवाई और टेस्ट लगातार कर रहे थे। अमेरिका और नीलोफ़र को अब एक साल से भी ऊपर हो गया था। पेंटिंग तो उसकी छूट चुकी थी। बस हॉस्पिटल में थोड़ा बहुत चलना फिरना जो होता था, वोही होता था। यूं तो डॉ स्मिथ कभी हॉस्पिटल छोड़ कर जाते नहीँ थे कभी भी। मगर अभी उनको 15 दिन के लिए Birmingham जाना था क्यूंकि उनको एक इंटरनेशनल बेस्ट eye surgeon का अवार्ड मिल रहा था लंदन की क्वीन से।

सो 15 दिन के लिए सभी अवॉर्ड से सम्मानित होने वालों को क्वीन के महल में रहना था। डॉ स्मिथ इस अवार्ड की वजह से काफी उत्साहित थे। जाने से पहले उन्होंने हॉस्पिटल का चार्ज अपने जूनियर डॉ शामीन को दिया और उन्हें सारा कुछ समझा दिया। डॉ स्मिथ के जाने के एक दिन बाद से शामीन सभी खास patients का खासकर जिनका ऑपरेशन होना था, उनकी फाइल देख रहे थे शाम को थोड़ा समय मिलने पर। नीलोफ़र की फाइल देख कर डॉ शामीन एक दम भौचक्का रह गए क्यूंकि नीलोफ़र दिमागी और शारीरिक तौर पर eye सर्जरी के लिए बिल्कुल तैयार थी। उसी रात डॉ शामीन ने नीलोफ़र से मिलने का निश्चय किया। जब डॉ शामीन ने नीलोफ़र को बताया कि दाल में कुछ काला है, तो दोनों ने मिलकर निर्णय लिया कि अगले 10 दिन के अंदर डॉ शामीन नीलोफ़र की आंखों का ऑपरेशन कर देंगे।

दो दिन बाद डॉ शामीन नीलोफ़र को ले कर नज़दीक के एक दूसरे हॉस्पिटल में ले कर गए और वहां उसका आंखों का ऑपरेशन कर डाला। ये सब से शामीन ने बड़ी सावधानी से किया ताकि डॉ स्मिथ के हॉस्पिटल में किसी को कोई शक ना हो सके। ऑपरेशन क़ामयाब रहा। नीलोफ़र अब सब कुछ साफ साफ देख सकती थी। डॉ शामीन ने नीलोफ़र को डॉ स्मिथ के सामने अंधा बने रहने को समझाया। और ये भी समझाया कि जितना जल्दी हो सके वो यहां से वापिस इंडिया चली जाए। डॉ स्मिथ वापिस आने के बाद बहुत उत्साहित थे और उन्होंने अपने खास दोस्तों के लिए एक खास पार्टी रखी। पार्टी के दो दिन बाद नीलोफ़र ने डॉ स्मिथ से गुज़ारिश की उनकी बात कृष्णा बुआ से कराने की। कृष्णा बुआ को नीलोफ़र ने किसी तरह से मना लिया कि वो वापिस उनके पास आ रही है।

जब ऑपरेशन होना होगा और डॉ स्मिथ कहेंगे कि वो ऑपरेशन के लिए तैयार है तो वो वापिस अमेरिका आ जाएगी। इसके बाद नीलोफ़र ने निकेत को फोन मिलवाया और उसे बता दिया कि वो वापिस बुआ के पास जा रही है। निकेत ने नीलोफ़र को समझाने की कोशिश की मगर वो नहीँ मानी। उसने कहा अगर मुझे अगले एक साल तक ये टेबलेट और capsule ही लेने हैं तो वो वहां भी ले सकती है। फिर एक साल बाद वो यहां reexamine कराने के लिए आ जाएगी और जैसा डॉ स्मिथ कहेंगे वैसा करेगी। निकेत दो महीने बाद इंडिया आ रहा था अपनी studies खत्म करके। नीलोफ़र को एयरपोर्ट पर लेने कृष्णा बुआ और एस्टेट के दो तीन लोग आए थे। दो महीने बाद निकेत का फोन आया वो इंडिया आ रहा है। एयरपोर्ट पर निकेत को लेने कृष्णा बुआ और नीलोफ़र गए।

नीलोफ़र की आंखों पर काला चश्मा और हाथ में सफेद छड़ी थी। लेकिन जो सामने आया वो नीलोफ़र के लिए बिल्कुल असहनीय गुज़रा। निकेत का हाथ किसी की कमर में था और वो दोनों बिल्कुल दायरे से बाहर एकदम चिपके हुए चल रहे थे। और भी कमर किसी और की नहीँ नीलोफ़र की बचपन की खास दोस्त रश्मि की थी। अचम्भे की बात ये थी कि कृष्णा बुआ ये देख कर बिल्कुल भी हैरान नहीँ थी ब्लकि मुस्कराते हुए उन दोनों को देख रही थी। पास आने पर निकेत ने रश्मि के कान में कुछ कहा और दोनों अलग अलग चलने लगे। निकेत ने नीलोफ़र फिर बुआ को गर्मजोशी से गले लगाया। पूरी भावुकतापूर्ण नुमाईश के साथ नीलोफ़र को दर्शाया की वो नीलोफ़र से कितना प्यार करता है और हर पल नीलोफ़र की याद में कैसे डूबा रहता था लंदन में।

नीलोफ़र ने पहले भी यक़ीन किया था उसपे, उसके विश्वास दिलाने पर। नीलोफ़र को अभी यकीं करना था उसपे ताकि पूरी असलियत जान सके। थोड़ी छानबीन करने के बाद नीलोफ़र ने सब पता लगा लिया। नीलोफ़र की कार एक्सीडेंट, नीलोफ़र की आँखों का जाना, डॉ स्मिथ का ऑपरेशन लटकाना, ये सब निकेत का कराया हुआ था। बुआ को उसने अपने साथ मिला लिया था। शायद सारी जायदाद नीलोफ़र के नाम होना उन दोनों को गवारा नहीँ गुज़रा। नीलोफ़र को जिंदा रखना उनकी मजबूरी थी। और ये सब करके जो वो चाहते थे वो आज़ादी तो मिल ही गई थी। मगर ये आज़ादी क्या नीलोफ़र के रहते नहीँ थी उनको? शायद निकेत को नहीँ थी, रश्मि वाली आज़ादी। ये सब उसने ज़रूरत से ज़्यादा ही कर दिया। और इसका भुगतान उसको करना ही होगा। पिछले दस दिन से रश्मि यहीं है। ज़्यादातर निकेत के कमरे में।

नीलोफ़र कई बार गई उसके कमरे में अपनी छड़ी ले कर और काला चश्मा लगा कर ताकि किसी को कोई शक ना हो। आज सुबह अचानक निकेत नीलोफ़र के कमरे में आया।नीलोफ़र को canvas पर देख कर उसको एक ज़बर्दस्त झटका लगा। किसी तरह उसको यकीन दिलाया कि डॉ स्मिथ ने ही कहा था जब तक आंखों की रोशनी नहीँ आ जाती, अपना पेंटिंग का शौक चाहे नाम को ही, कायम रखना। निकेत को ना चाहते हुए भी यकीन करना ही पड़ा। "कहीं जा रहे हो?" नीलोफ़र ने पूछा। "हाँ, सोच रहा हूँ थोड़ा एस्टेट का चक्कर लगा कर आता हूं।" निकेत बोला। "मैं भी चलूँ साथ?" नीलोफ़र ने पूछा। "नहीँ, तुम क्या करोगी? तुम बैठो मैं आया थोड़ी देर में," निकेत बोला। कार में रश्मि और निकेत दोनों इकट्ठे बैठे। निकेत को अपना खास ड्राइवर नहीँ दिखा तो उसने खुद ड्राइव करने का निर्णय लिया।

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Photo credit: Magdalena Roeseler on VisualHunt.com

रश्मि आगे साथ बैठ गयी। आधे घंटे बाद कृष्णा बुआ को फोन आया निकेत की कार का बहुत बुरी तरह एक्सीडेंट हुआ है एक ट्रक की साथ।निकेत के सिर पर गहरी चौट है और दोनों पैर भी बुरी तरह ज़ख्मी हैं। शायद ट्रक पैरों के ऊपर से निकल गया है। रश्मि बच नहीँ पायी। 15 दिन तक हॉस्पिटल में जुझने के बाद डॉक्टरों ने निकेत को बचा ही लिया। मगर उसकी दोनों आंखें और दोनों टांगों से उसे हाथ धोना प़डा। एक महीने बाद निकेत को हॉस्पिटल से छुट्टी मिली। घर आया तो नीलोफ़र ने पूछा - "डॉ स्मिथ के हॉस्पिटल जाओगे आंखों के इलाज के लिए? मैंने बात की है उनसे, वो बता रहे हैं कि दो तीन साल तो लगेंगे ही।" निकेत का wheelchair से बाकी की उम्र का नाता जुड़ गया। परिवार की सारी जायदाद से बुआ और निकेत दोनों को हाथ धोना पड़ा।

नीलोफ़र ने दोनों के लिए एक अलग से घर खरीद कर दोनों को वहां भेज दिया। जाने से पहले नीलोफ़र बोली -" निकेत, जिस दिन तुम सच्ची मुहब्बत सच्चे दिल से निबाहते थक गए थे तो शायद ये सब ना होता। और अब तुम मुझसे बिल्कुल आजाद हो। रश्मि तो गई मगर किसी और को भी चाहते हो तो बताओ। और हाँ, तुम्हारा और बुआ का हर महीने का खर्चा पहुँच जाया करेगा।"


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2 comments:

  1. Would love to read the translation of this.

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    1. Google translate won't be too accurate. I will have to do it in find other post. Some day.

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