Tuesday, May 14, 2013

नारी: तुम चाहो अगर पर चाहो तो सही एक बार

तुमने अगर चाहा होता तो सूरज से हज़ार गुना आंच
हो सकती थी तुम्हारी
तुमने अगर चाहां होता हज़ार चाँद तुमसे रौशनी
ले रहे होते

तुम चाहो तो सारी कायनात तुम्हारे क़दमों
में नतमस्तक हो जाए
तुम चाहो तो सारी सृष्टि
स्थिर हो जाए

तुम अचल हो तुम अटल हो
तुम अच्छी तरह जानती हो
तुम शक्ति हो तुम दुर्गा हो
मगर फिर भी तुम तुम ही हो

तुम्हारी कोख का जनन तुम्हे ही सहना पड़ा
हर बारी
नर बड़ा हो कर तुम्हारा ही भक्षक बना
नारी तुम्हारी तरह सहती रही उम्र भर

तुम एक बार ठानो तो सही
की अब एक भी जनन नहीं
सृष्टि नष्ट होती है तो हो
या फिर हर एक नर नतमस्तक हो कर
जो अब तक किया
फिर कभी न करने की
कसम खाए

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