Sunday, March 03, 2013

नारी - १

आइना देखते हैं फिर भी देखते नहीं
अपनी हस्ती को चाह कर भी देखते नहीं 

यूँ तो चाहें तो ज़मीन का वजूद ना रहे 
मगर हम हैं की बनाते है तोड़ते नहीं 

सह सह कर भी मुस्कुराते हैं हर पल 
तुम्हारे अक्स को अपने से जुदा देखते नहीं 

माँ बहिन प्रियतम पत्नी हर रूप में साथ निभाया 
तुम हो कि अपनी ज़रुरत के सिवा कुछ देखते नहीं 
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